पारंपारिक लोकगीतों की धून पर धान की रोपाई शुरू लोकशाही एक्सप्रेस गोंदिया

लोकशाही एक्सप्रेस गोंदिया 
पिछले चार दिनों से जिले में झमाझम बारिश होने से किसानों ने 1 जुलाई से धान की रोपाई का काम शुरू कर दिया है। इसी बीच पारंपारिक लोकगीतों की धून पर महिला-पुरूष खेत मजदूर धान की रोपाई में जुट गए है। इन दिनों खेतों में ‘या बुढगी माय परा लगावन जासे, घर भर आदमीच आदमी सेती पर येला चयन कहां से’ इस तरह का पोवारी भाषा का लोकगीत गुणगुणा रहा है। 
बता दें कि गोंदिया जिले की मुख्य फसल धान है। यहां के डेढ़ लाख से अधिक किसान परिवार धान की खेती पर ही निर्भर है। पारंपारिक खेती कर अपनी उपजिविका चलाने में ही यहां के किसान व्यस्त रहते है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान अपनी पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए बड़ी खुशी के साथ लोकगीतों की धून पर धान की रोपाई भी करते है। लेकिन आधुनिक युग में अब पारंपारिक लोकगीत लुप्त होते जा रहे है। अर्थात नई पिढी को लोकगीत दूर होते जा रहा है। पिछले चार दिनों से गोंदिया जिले में झमाझम बारिश होने से किसानों के चेहरों पर खुशियां नजर आ रही है और 1 जुलाई से जिले के अधिकांश स्थानों पर धान की रोपाई के काम को गति मिल गई है। इन दिनों खेतों में पारंपारिक पोवारी लोकगीत सुनाई दे रहे है। गोरेगांव तहसील के हिरापुर के अनेक खेतों में पोवारी गीतों की गूंज सुनने काे मिल रही है। इन दिनों ‘या बुढगी माय परा लगावन जासे, घर भर आदमीच-आदमी सेती पर येला चयन कहां से’ यह पोवारी लोकगीत गूंज रहा है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों ने यह बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों के किसान पुरानी परंपरा को निर्वहन करने के लिए अपनी पुरानी संस्कृति को टिकाए रखने के लिए अपनाते है। धान रोपाई के दौरान पारंपारिक लोकगीतों का गायन माहौल को और अधिक मनोहारी बना देता है। लोकगीतों के साथ खेती कार्य करते समय किसी भी खेत मजदूरों को आलस नहीं आता है। जिससे काम भी अधिक होता है और स्वास्थ्य भी स्वस्थ्य रहता है।